सूक्ष्म जगत के लोगों को हमारी श्रद्धा और श्रद्धा से दी गयी वस्तु से तृप्ति का एहसास होता है।
बदले में वे भी हमें मदद करते हैं, प्रेरणा देते हैं, प्रकाश देते हैं, आनंद और शाँति देते
बदले में वे भी हमें मदद करते हैं, प्रेरणा देते हैं, प्रकाश देते हैं, आनंद और शाँति देते
हैं। हमारे घर में किसी संतान का जन्म होने वाला हो तो वे अच्छी आत्माओं को भेजने में सहयोग
करते हैं। श्राद्ध की बड़ी महिमा है। पूर्वजों से उऋण होने के लिए, उनके शुभ आशीर्वाद से उत्तम संतान
की प्राप्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है।
करते हैं। श्राद्ध की बड़ी महिमा है। पूर्वजों से उऋण होने के लिए, उनके शुभ आशीर्वाद से उत्तम संतान
की प्राप्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है।
आजादी से पूर्व काँग्रेस बुरी तरह से तीन-चार टुकड़ों में बँट चुकी थी। अँग्रेजों का षडयंत्र सफल हो रहा
था। काँग्रेस अधिवेशन में कोई आशा नहीं रह गयी थी कि बिखरे हुए नेतागण कुछ कर सकेंगे। महामना
मदनमोहन मालवीय, भारत की आजादी में जिनका योगदान सराहनीय रहा है, यह बात ताड़ गये कि
सबके रवैये बदल चुके हैं और अँग्रेजों का षडयंत्र सफल हो रहा है। अतः अधिवेशन के बीच में ही चुपके
से खिसक गये एक कमरे में। तीन आचमन लेकर, शांत होकर बैठ गये। उन्हें अंतः प्रेरणा हुई और उन्होंने
श्रीमदभागवदगीता के 'गजेन्द्रमोक्ष' का पाठ किया।
था। काँग्रेस अधिवेशन में कोई आशा नहीं रह गयी थी कि बिखरे हुए नेतागण कुछ कर सकेंगे। महामना
मदनमोहन मालवीय, भारत की आजादी में जिनका योगदान सराहनीय रहा है, यह बात ताड़ गये कि
सबके रवैये बदल चुके हैं और अँग्रेजों का षडयंत्र सफल हो रहा है। अतः अधिवेशन के बीच में ही चुपके
से खिसक गये एक कमरे में। तीन आचमन लेकर, शांत होकर बैठ गये। उन्हें अंतः प्रेरणा हुई और उन्होंने
श्रीमदभागवदगीता के 'गजेन्द्रमोक्ष' का पाठ किया।
बाद में थोड़ा सा सत्संग प्रवचन दिया तो काँग्रेस के सारे खिंचाव-तनाव समाप्त हो गये एवं सब बिखरे हुए
काँग्रेसी एक जुट होकर चल पड़े। आखिर अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पड़ा।
काँग्रेसी एक जुट होकर चल पड़े। आखिर अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पड़ा।
काँग्रेस के बिखराव को समाप्त करके, काँग्रसियों को एकजुट कर कार्य करवानेवाले मालवीयजी का
जन्म कैसे हुआ था?
जन्म कैसे हुआ था?
मालवीयजी के जन्म से पूर्व हिन्दुओं ने अंग्रेजों के विरुद्ध जब आंदोलन की शुरुआत की थी तब
अंग्रेजों ने सख्त 'कर्फ्यू' जारी कर दिया था। ऐसे दौर में एक बार मालवीयजी के पिता जी कहीं से
कथा करके पैदल ही घर आ रहे थे।
अंग्रेजों ने सख्त 'कर्फ्यू' जारी कर दिया था। ऐसे दौर में एक बार मालवीयजी के पिता जी कहीं से
कथा करके पैदल ही घर आ रहे थे।
उन्हें मार्ग में जाते देखकर अंग्रेज सैनिकों ने रोका-टोका एवं सताना शुरु किया। वे उनकी भाषा नहीं
जानते थे और अंग्रेज सैनिक उनकी भाषा नहीं जानते थे। मालवीय जी के पिता ने अपना साज
निकाला और कीर्तन करने लगे। कीर्तन से अंग्रेज सैनिकों को कुछ आनंद आया और इशारों से
धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा किः "चलो, हम आपको पहुँचा देते हैं।" यह देखकर मालवीयजी
के पिता को हुआ किः "मेरे कीर्तन से प्रभावित होकर इन्होंने मुझे तो हैरान करना बन्द कर दिया
किन्तु मेरे भारत देश के लाखों-करोड़ों भाईयों का शोषण हो रहा है, इसके लिए मुझे कुछ करना चाहिए।"
जानते थे और अंग्रेज सैनिक उनकी भाषा नहीं जानते थे। मालवीय जी के पिता ने अपना साज
निकाला और कीर्तन करने लगे। कीर्तन से अंग्रेज सैनिकों को कुछ आनंद आया और इशारों से
धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा किः "चलो, हम आपको पहुँचा देते हैं।" यह देखकर मालवीयजी
के पिता को हुआ किः "मेरे कीर्तन से प्रभावित होकर इन्होंने मुझे तो हैरान करना बन्द कर दिया
किन्तु मेरे भारत देश के लाखों-करोड़ों भाईयों का शोषण हो रहा है, इसके लिए मुझे कुछ करना चाहिए।"
बाद में वे गया जी गये और प्रेमपूर्वक श्राद्ध किया। श्राद्ध के अंत में अपने दोनों हाथ उठाकर
पितरों से प्रार्थना करते हुए उन्होंने कहाः 'हे पितरो ! मेरे पिण्डदान से अगर आप तृप्त हुए हों,
मेरा किया हुआ श्राद्ध अगर आप तक पहुँचा हो तो आप कृपा करके मेरे घर में ऐसी ही संतान
दीजिए जो अंग्रेजों को भगाने का काम करे और मेरा भारत आजाद हो जाये.....।'
पितरों से प्रार्थना करते हुए उन्होंने कहाः 'हे पितरो ! मेरे पिण्डदान से अगर आप तृप्त हुए हों,
मेरा किया हुआ श्राद्ध अगर आप तक पहुँचा हो तो आप कृपा करके मेरे घर में ऐसी ही संतान
दीजिए जो अंग्रेजों को भगाने का काम करे और मेरा भारत आजाद हो जाये.....।'
पिता की अंतिम प्रार्थना फली। समय पाकर उन्हीं के घर मदनमोहन मालवीय जी का जन्म हुआ।