Thursday, 24 August 2023

दुआ और बद्दुआ

  


    एक भिखारी रोज एक दरवाजें पर जाता और भिख के लिए आवाज लगाता, और जब घर मालिक बाहर आता तो उसे गंदी_गंदी गालिया और ताने देता, मर जाओ, काम क्यूं नही करतें, जीवन भर भीख मांगतें रहोगे, कभी_कभी गुस्सें में उसे धकेल भी देता, पर भिखारी बस इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारें पापों को क्षमा करें|


         एक दिन सेठ बड़े गुस्सें में था, शायद व्यापार में घाटा हुआ था, वो भिखारी उसी वक्त भीख मांगने आ गया, सेठ ने आओ देखा ना ताओ, सीधा उसे पत्थर से दे मारा, भिखारी के सर से खून बहने लगा, फिर भी उसने सेठ से कहा ईश्वर तुम्हारें पापों को क्षमा करें, और वहां से जाने लगा, सेठ का थोड़ा गुस्सा कम हुआ, तो वहां सोचने लगा मैंने उसे पत्थर से भी मारा पर उसने बस दुआ दी, इसके पीछे क्या रहस्य है जानना पड़ेगा, और वहां भिखारी के पीछे चलने लगा|


       भिखारी जहाँ भी जाता सेठ उसके पीछे जाता, कही कोई उस भिखारी को कोई भीख दे देता तो कोई उसे मारता, जालिल करता गालियाँ देता, पर भिखारी इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करें, अब अंधेरा हो चला था, भिखारी अपने घर लौट रहा था, सेठ भी उसके पीछे था, भिखारी जैसे ही अपने घर लौटा, एक टूटी फूटी खाट पे, एक बुढिया सोई थी, जो भिखारी की पत्नी थी, जैसे ही उसने अपने पति को देखा उठ खड़ी हुई और भीख का कटोरा देखने लगी, उस भीख के कटोरे मे मात्र एक आधी बासी रोटी थी, उसे देखते ही बुढिया बोली बस इतना ही और कुछ नही, और ये आपका सर कहा फूट गया?


       भिखारी बोला, हाँ बस इतना ही किसी ने कुछ नही दिया सबने गालिया दी, पत्थर मारें, इसलिए ये सर फूट गया, भिखारी ने फिर कहा सब अपने ही पापों का परिणाम हैं, याद है ना तुम्हें, कुछ वर्षो पहले हम कितने रईस हुआ करते थे, क्या नही था हमारे पास, पर हमने कभी दान नही किया, याद है तुम्हें वो अंधा भिखारी,.......

( बुढिया की ऑखों में ऑसू आ गये और उसने कहा हाँ,)

    कैसे हम उस अंधे भिखारी का मजाक उडाते थे, कैसे उसे रोटियों की जगह खाली कागज रख देते थे, कैसे हम उसे जालिल करते थे, कैसे हम उसे कभी_कभी मार वा धकेल देते थे, अब बुढिया ने कहा हाँ सब याद है मुजे, कैसे मैंने भी उसे राह नही दिखाई और घर के बनें नालें में गिरा दिया था, जब भी वहाँ रोटिया मांगता मैंने बस उसे गालियाँ दी, एक बार तो उसका कटोरा तक फेंक दिया|


      और वो अंधा भिखारी हमेशा कहता था, तुम्हारे पापों का हिसाब ईश्वर करेंगे, मैं नही, आज उस भिखारी की बद्दुआ और हाय हमें ले डूबी

      फिर भिखारी ने कहा, पर मैं किसी को बद्दुआ नही देता, चाहे मेरे साथ कितनी भी जात्ती क्यू ना हो जाए, मेरे लब पर हमेशा दुआ रहती हैं, मैं अब नही चाहता, की कोई और इतने बुरे दिन देखे, मेरे साथ अन्याय करने वालों को भी मैं दुआ देता हूं, क्यूकि उनको मालूम ही नही, वो क्या पाप कर रहें है, जो सीधा ईश्वर देख रहा हैं, जैसी हमने भुगती है, कोई और ना भुगते, इसलिए मेरे दिल से बस अपना हाल देख दुआ ही निकलती हैं,|

      

        सेठ चुपके_चुपके सब सुन रहा था, उसे अब सारी बात समझ आ गयी थी, बुढे_बुढिया ने आधी रोटी को दोनो मिलकर खाया, और प्रभु की महिमा है बोल कर सो गयें|


     अगले दिन, वहाँ भिखारी भिख मांगने सेठ कर यहाँ गया, सेठ ने पहले से ही रोटिया निकल के रखी थी, उसने भिखारी को दी और हल्की से मुस्कान भरे स्वर में कहा, माफ करना बाबा, गलती हो गयी, भिखारी ने कहा, ईश्वर तुम्हारा भला करे, और वो वहाँ से चला गया|

       सेठ को एक बात समझ आ गयी थी, इंसान तो बस दुआ_बद्दुआ देते है पर पूरी वो ईश्वर वो जादूगर कर्मो के हिसाब से करता हैं,,,,,,,,|


     हो सके तो बस अच्छा करें, वो दिखता नही है तो क्या हुआ, सब का हिसाब पक्का रहता है उसके पास |


 


 

सत्संग का असर




एक संत रोज अपने शिष्यों को गीता पढ़ाते थे। सभी शिष्य इससे खुश थे। लेकिन एक शिष्य चिंतित दिखा। संत ने उससे इसका कारण पूछा। शिष्य ने कहा- गुरुदेव, मुझे आप जो कुछ पढ़ाते हैं, वह समझ में नहीं आता। जबकि बाकी सारे लोग समझ लेते हैं। मैं इसी वजह से चिंतित और दुखी हूं। आखिर मुझे गीता का भाष्य क्यों समझ में नहीं आता? गुरु ने कहा- तुम कोयला ढोने वाली टोकरी में जल भर कर ले आओ। शिष्य चकित हुआ। आखिर टोकरी में कैसे जल भरेगा? लेकिन चूंकि गुरु ने यह आदेश दिया था, इसलिए वह टोकरी में नदी का जल भरा और दौड़ पड़ा। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। जल टोकरी से छन कर गिर पड़ा। उसने टोकरी में जल भर कर कई बार गुरु जी तक दौड़ लगाई। लेकिन टोकरी में जल टिकता ही नहीं था। तब वह अपने गुरुदेव के पास गया और बोला- गुरुदेव, टोकरी में पानी ले आना संभव नहीं। कोई फायदा नहीं। गुरु बोले- फायदा है। तुम जरा टोकरी में देखो। शिष्य ने देखा- बार- बार पानी में कोयले की टोकरी डुबाने से स्वच्छ हो गई है। उसका कालापन धुल गया है। गुरु ने कहा- ठीक जैसे कोयले की टोकरी स्वच्छ हो गई और तुम्हें पता भी नहीं चला। उसी तरह सत्संग  बार- बार सुनने से खूब फायदा होता है। भले ही अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है। लेकिन तुम इसका फायदा बाद में महसूस करोगे।

लालच (Greed)





एक सच्ची प्रेरक कहानी


रमेश चंद्र शर्मा का मेडिकल स्टोर अपने स्थान के कारण काफी पुराना और अच्छी स्थिति में था लेकिन जैसे कि कहा जाता है कि धन एक व्यक्ति के दिमाग को भ्रष्ट कर देता है और यही बात रमेश चंद्र जी के साथ भी घटित हुई।

रमेश जी बताते हैं कि मेरा मेडिकल स्टोर बहुत अच्छी तरह से चलता था और मेरी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी। अपनी कमाई से मैंने जमीन और कुछ प्लॉट खरीदे और अपने मेडिकल स्टोर के साथ एक क्लीनिकल लेबोरेटरी भी खोल ली। लेकिन मैं यहां झूठ नहीं बोलूंगा कि मैं एक बहुत ही लालची किस्म का आदमी था क्योंकि मेडिकल फील्ड में दोगुनी नहीं बल्कि कई गुना कमाई होती है।

शायद ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे कि मेडिकल प्रोफेशन में 10 रुपये में आने वाली दवा आराम से 70-80 रुपये में बिक जाती है। लेकिन अगर कोई मुझसे कभी दो रुपये भी कम करने को कहता तो मैं ग्राहक को मना कर देता। खैर, मैं हर किसी के बारे में बात नहीं कर रहा हूं, सिर्फ अपनी बात कर रहा हूं।

वर्ष 2008 में, गर्मी के दिनों में एक बूढ़ा व्यक्ति मेरे स्टोर में आया। उसने मुझे डॉक्टर की पर्ची दी। मैंने दवा पढ़ी और उसे निकाल लिया। उस दवा का बिल 560 रुपये बन गया। लेकिन बूढ़ा सोच रहा था। उसने अपनी सारी जेब खाली कर दी लेकिन उसके पास कुल 180 रुपये थे। मैं उस समय बहुत गुस्से में था क्योंकि मुझे काफी समय लगा कर उस बूढ़े व्यक्ति की दवा निकालनी पड़ी थी और ऊपर से उसके पास पर्याप्त पैसे भी नहीं थे।

बूढ़ा दवा लेने से मना भी नहीं कर पा रहा था। शायद उसे दवा की सख्त जरूरत थी। फिर उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा, "मेरी मदद करो। मेरे पास कम पैसे हैं और मेरी पत्नी बीमार है। हमारे बच्चे भी हमें पूछते नहीं हैं। मैं अपनी पत्नी को इस तरह वृद्धावस्था में मरते हुए नहीं देख सकता।"

लेकिन मैंने उस समय उस बूढ़े व्यक्ति की बात नहीं सुनी और उसे दवा वापस छोड़ने के लिए कहा। यहां पर मैं एक बात कहना चाहूंगा कि वास्तव में उस बूढ़े व्यक्ति की दवा की कुल राशि 120 रुपये ही बनती थी। अगर मैंने उससे 150 रुपये भी ले लिए होते तो भी मुझे 30 रुपये का मुनाफा ही होता। लेकिन मेरे लालच ने उस बूढ़े लाचार व्यक्ति को भी नहीं छोड़ा।

फिर मेरी दुकान पर खड़े एक दूसरे ग्राहक ने अपनी जेब से पैसे निकाले और उस बूढ़े आदमी के लिए दवा खरीदी। लेकिन इसका भी मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मैंने पैसे लिए और बूढ़े को दवाई दे दी।

समय बीतता गया और वर्ष 2009 आ गया। मेरे इकलौते बेटे को ब्रेन ट्यूमर हो गया। पहले तो हमें पता ही नहीं चला। लेकिन जब पता चला तो बेटा मृत्यु के कगार पर था। पैसा बहता रहा और लड़के की बीमारी खराब होती गई। प्लॉट बिक गए, जमीन बिक गई और आखिरकार मेडिकल स्टोर भी बिक गया लेकिन मेरे बेटे की तबीयत बिल्कुल नहीं सुधरी। उसका ऑपरेशन भी हुआ और जब सब पैसा खत्म हो गया तो आखिरकार डॉक्टरों ने मुझे अपने बेटे को घर ले जाने और उसकी सेवा करने के लिए कहा। उसके पश्चात 2012 में मेरे बेटे का निधन हो गया। मैं जीवन भर कमाने के बाद भी उसे बचा नहीं सका।

2015 में मुझे भी लकवा मार गया और मुझे चोट भी लग गई। आज जब मेरी दवा आती है तो उन दवाओं पर खर्च किया गया पैसा मुझे काटता है क्योंकि मैं उन दवाओं की वास्तविक कीमतों को जानता हूं।

एक दिन मैं कुछ दवाई लेने के लिए मेडिकल स्टोर पर गया और 100 रु का इंजेक्शन मुझे 700 रु में दिया गया। लेकिन उस समय मेरी जेब में 500 रुपये ही थे और इंजेक्शन के बिना ही मुझे मेडिकल स्टोर से वापस आना पड़ा। उस समय मुझे उस बूढ़े व्यक्ति की बहुत याद आई और मैं घर चला गया।

मैं लोगों से कहना चाहता हूं कि ठीक है कि हम सभी कमाने के लिए बैठे हैं क्योंकि हर किसी के पास एक पेट है। लेकिन वैध तरीके से कमाएं। गरीब लाचारों को लूट कर कमाई करना अच्छी बात नहीं क्योंकि नरक और स्वर्ग केवल इस धरती पर ही हैं, कहीं और नहीं। और आज मैं नरक भुगत रहा हूं।

पैसा हमेशा मदद नहीं करता। हमेशा ईश्वर के भय से चलो। उसका नियम अटल है क्योंकि कई बार एक छोटा सा लालच भी हमें बहुत बड़े दुख में धकेल सकता है।
        *।। जय सियाराम जी।।*
         *।। ॐ नमह शिवाय।।*

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Tuesday, 22 August 2023

दुःख का कितना बड़ा उपकार

 



एक बड़ा प्रसिध्द राज नेता था बंगाल में ….बड़ा जाना-माना था..धर्म परायण व्यक्ति था..अश्विनी दत्त बंगाल के प्रसिध्द राज नेता थे..उन के गुरु राज नारायण थे.

उस के गुरु को लकवा मार गया..3 महीने के बाद अश्विनी को पता चला…3 महीने से गुरु को लकवा मार गया, मुझे पता नही चला सोच कर विव्हल हो कर भागता भागता आया गुरु के पास…ज्यो ही गुरु के पास पहुँचा..प्रणाम करने जाता है तो गुरु का एक हाथ तो लकवे से निकम्मा  हो चुका था..गुरु ने दूसरे हाथ से पकड़ के उठाया..
बोले, ‘बेटा, कैसे भागे भागे आए हो…देखो भागा तो शरीर..और दुख हुआ मन में..लेकिन इन दोनो को तुम जानने वाले हो..ऐसा कर के गुरु ने सत्य स्वरूप ईश्वर आत्मा की सार बातें बताई..सुनते सुनते वो तो दुखी आया था, चिंतित हो के आया था…लेकिन गुरु की वाणी सुनते सुनते उस का दुख चिंता गायब हो गया..3 घंटे कैसे बीत  गये पता ही नही चला…
हसने लगा,”गुरु जी 3 घंटे बीत  गये!मुझे तो पता ही नही चला..मैं तो बहोत विव्हल  हो के आया था आप का स्वास्थ्य पुछने के लिए..लेकिन आप को ये लकवा मार गया इस की पीड़ा नही?..दुख नही? हम तो बहोत  दुखी थे और आप ने तो मेरे को 3 घंटे तक सत्संग का अमृतपान  कराया…”
गुरु ने अश्विनी दत्त(बंगाल के प्रसिध्द नेता) के पीठ पे थपथपाया..बोले, “पगले पीड़ा हुई है तो शरीर को..लकवा मारा है तो शरीर को..इस हाथ को..लेकिन दूसरा हाथ मौजूद है, पैर भी मौजूद है, जिव्हा भी मौजूद है..ये उस प्रभु की कितनी कृपा है!..पूरे शरीर को भी तो लकवा हो सकता था..हार्ट एटैक हो सकता था.और 60 साल तक शरीर स्वस्थ रहा..अभी थोड़े दिन..3 महीने से ही तो लकवा है …ये उस की कितनी कृपा है की दुख भेज कर वो हम को शरीर की आसक्ति मिटाने का संदेश देता है..सुख भेज कर हमें उदार बनाने का और परोपकार करने का संदेश देता है..हम को तो दुख का आदर करना चाहिए..दुख का उपकार मानना चाहिए..बचपन में हम दुखी होते थे जब माँ-बाप ज़बरदस्ती स्कूल ले जाते थे..लेकिन वो दुख नही होता तो आज हम विद्वान भी नही हो सकते थे..ऐसा कोई मनुष्य धरती पर नही है जिस का दुख के बिना विकास हुआ हो…दुख का तो खूब खूब धन्यवाद करना चाहिए…और दिखता दुख है, लेकिन अंदर से सुख, सावधानी और विवेक से भरा है.. और मुझे हरिचर्चा में विश्रान्ति दिलाया.. सत्संग करने के भागा दौड़ी से आराम करना चाहिए था, लेकिन मैं नही कर पा रहा था…तुम लोग नही करने देते थे..तो भगवान ने लकवा कर के आराम दिया..देखो ये उस की कितनी कृपा है..भगवान की और दुख की बड़ी कृपा है..माँ-बाप की कृपा है तो माँ बाप का हम श्राध्द  करते, तर्पण करते..लेकिन इस दुख देवता का तो हम श्राध्द तर्पण भी नही करते..क्यूँ की वो बेचारा आता है, मर जाता है..रहेता नही है…अभी ठीक भी हो जाएगा, अथवा शरीर के साथ चला जाएगा..माँ बाप तो मरने के बाद भी रहेते है..ये बेचारा तो एक बार मर जाता है तो फिर रहेता ही नही..तो इस का तो श्राद्ध  भी नही करते, तो इस का तो उपकार माने बेटे अश्विनी…”
अश्विनी देखता रहे गया !
गुरु ने कहा, “बेटा ये तेरी मेरी वार्ता जो सुनेगा वो भी स्वस्थ हो जाएगा.. बीमारी शरीर में आती है लाला!..दुख  तो मान में आता है …चिंता चित्त में आती है..तुम तो निर्लेप  नारायण के अमर आत्मा हो!”
हरि ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम प्रभुजी ओम.. माधुर्य ओम..मेरे जी ओम ओम..प्यारे जी ओम…हा हा हा हा

मनुष्य को भगवान ने कितने कितने  अनुदान दिए है..ज़रा सोचते है तो मौन हो जाता है! मन विश्रान्ति में चला जाता है…जब तेरा गुरु है, और तू बोले की मैं परेशान हूँ, मैं दुखी हूँ तो तू गुरु का अपमान करता है..मानवता का अपमान करता है..जो बोलते है ना मैं दुखी हूँ, परेशान हूँ  तो समझ लेना की उन के भाग्य के वे शत्रु है…अभागे लोग सोचते है मैं दुखी, परेशान हूँ..समझदार लोग ऐसा कभी नही सोचते है…जो बोलते मैं दुखी परेशान हूँ उस के मान में  दुख परेशानी  ऐसा गहेरा उतरता जाएगा की जैसे हाथी दलदल में फँसे और ज्यों निकलना चाहे तो और गहेरा उतरे ..ऐसे ही दुखी और परेशान हूँ बोलते तो समझो वो दुख और परेशानी में हाथी के नाई  गहेरा जा रहा है..अभागा है..अपने भाग्य को कोस रहा है..
‘मैं दुखी नही हूँ, मैं परेशान नही हूँ..दुख है तो मन को है, परेशानी है तो मन को है..’ ये पक्का करे..वास्तव में मन की कल्पना है परेशानी..दुख परेशानी  तो मेरे विकास करने के लिए है  ..वाह मेरे प्रभु !
सुखम वा यदि वा दुखम स योगी परमो मतः ll

जिस वस्तु को हम प्यार करते वो प्यारी हो जाती है, जिस वस्तु को हम महत्व देते वो महत्व पूर्ण हो जाती है..जिस वस्तु को मानव ठुकरा दे वो वस्तु बेकार हो जाती है..नोइडा में जहा सत्संग हुआ था तो वहाँ खेत थे..और वहाँ अब पौने चार लाख रुपये में 1 मीटर जगह मिलती है..हे मानव तू जिस जगह को महत्व देता वो जगह कीमती हो जाती..तू जिस फॅशन को महत्व देता वो कीमती हो जाती..तू इतना सब को महत्व देनेवाला अपने आप को कोस कर अपना सत्यानाश क्यूँ करता है?

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