सूरदासजी जन्मांध थे उनके कोई गुरु भी नहीं थे, फिर भी कृष्ण भक्ति रस की ऐसी वर्षा, जो 'मैं' को भिगो दे.. उन्हें कैसे मिली, जब भी कभी वो किसी गड्ढे में गिरते या नदी खाई में या झरने में गिराने वाले रहते तो, उन्हें भगवन स्वयं आके बचाते थे..!!
सूरदास जी के जीवन परिचय
सूरदास, भारतीय साहित्य के प्रमुख संत-कवि थे जिनकी रचनाएं भक्ति, प्रेम, और आध्यात्मिकता के माध्यम से जनता के बीच लोकप्रिय थीं। सूरदास का जन्म 1478 ईसा पूर्व में वाराणसी के पास सिथली नामक गाँव में हुआ था। उनका असली नाम सुदास था, लेकिन उन्हें 'सूरदास' के नाम से अधिक पहचाना जाता है। सूरदास की रचनाओं में गोपीयों के प्रेम, राधा-कृष्ण का लीलाचरित्र, और भक्ति की उच्चता का वर्णन है।
सूरदास के दोहे उनकी आध्यात्मिक भावना और भक्ति का प्रतिक हैं। उनके दोहे भक्ति-मार्ग के आधारशिला माने जाते हैं और उनमें दिव्यता की अनुभूति का संवेदनशीलता से विवरण है।
सूरदास के दोहे में एक सामाजिक संदेश भी छिपा होता है। उन्होंने भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, और सामाजिक असमानता के खिलाफ विचार किए। उनके दोहे सामान्य जीवन के मूल्यों की बड़ी मात्रा में समर्थन करते हैं और जीवन को सरल, साफ, और निष्कपट बनाने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
सूरदास के दोहे अपने अन्य ग्रंथों के साथ भारतीय साहित्य का अमूल्य अंग हैं। उनकी कविताएं और दोहे आज भी हमें आध्यात्मिक उद्धारण और जीवन में सही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उनकी भावनाओं की गहराई, उनके भक्तिभाव, और उनकी कल्पनाशीलता का विस्तार हमें एक अद्वितीय साहित्यिक अनुभव प्रदान करता है।
उद्धव बने सूरदास
सूरदास जी के ज्ञान और भक्ति से पूरी दुनिया चकित थी की सूरदासजी कृष्ण की ऐसी छवि कैसे देख पाते और उन्हें ऐसा ज्ञान कैसे मिल गया..!!
इसका जवाब भी भागवत में है, द्वापर युग में जब कृष्ण वृन्दावन छोड़ मथुरा चले गए थे, तब उन के विरह में गोपिया बेसुध रहती और सब कुछ भूल कर विलाप करती थी.. जब कृष्ण मथुरा के राजा बने तो कर्मयोग के कारण वापस वृन्दावन कभी नहीं लौट पाये.. जब उन्हें ये समाचार मिला तो उन्होंने अपने परम ज्ञानी दोस्त उद्धव को गोपियों को समझने भेजा की वो विलाप छोड़ दे और दुखी न हो मूर्त रूप को छोड़ कर परम स्वरुप में ध्यान लगाये.. उद्धव को भी घमंड था, अपने ज्ञान का और वो वृन्दावन पहुँच गए और गोपियों को उपदेश देने लगे और उन्हें कृष्ण के शरीर रूपी स्वरुप से मोह का त्याग करने कहने लगे. उद्धव ने गोपियों का उपहास भी उड़ाया.. तब गोपियों ने भी उद्धव को ऐसे ऐसे तर्क दिए, जिन्हे सुन कर उसका भी माथा ठमका और उसे अपना ज्ञान भी कम लगने लगा.. ये तो प्रेम की बात है उद्धव आशिकी इतनी सस्ती नहीं है..!!
उसके उद्धव के उपहास से क्रोधित हो, राधा की सखी ललिता ने श्राप दिया की उद्धवजी आप कृष्ण के शरीर रूप से मोह भंग करने को कह रहे हो पर ये संभव नहीं है, अत्यंत दुष्कर है आप को इस का ज्ञान नहीं है.. ललिता ने श्राप दिया कि जिस तरह हम कृष्ण के दर्शन को तरस रहे है, उसी तरह तुम भी तरसोगे, पर तुम्हे आँखों से दर्शन नहीं होंगे.. तब तुम्हे मन की आँखों से ही देखना होगा, जैसा तुम हमें करने को कह रहे हो.. तब तुम्हे हमारी पीड़ा का एहसास होगा.. उद्धव पर गोपियों का ऐसा रंग चढ़ा कि वो खुद बावले प्रतीत हो रहे थे और उन्होंने कृष्ण के पास जा कर गोपियों का दर्द कहा और खुद भी विलाप करने लगे..!!
तब कृष्ण ने उद्दव को श्राप में सहायता का आश्वासन दिया.. सूरदास के रूप में उसी उद्धव ने जन्म लिया और ललिता का श्राप भोगा.. मन में तो कृष्ण थे, पर अपनी आँखों से वो देख नहीं पाये और तब उन्हें गोपियों के दर्द का एहसास हुआ.. जिसका उन्होंने उद्धव रूप में उपहास उड़ाया था..!!
सबसे ज्यादा प्रचलित सूरदास जी के दोहे -
1. बिन सतसंगते मिलै नहीं मोहि, रति कृष्ण भजन में।
गोरी किरीती कम्पै करि बूझै, तात गुरु बिनु बैकुंठ में॥
2. मानस के हृदय बसहु स्यामा संग, जोय कछु सोवत नहिं अंग।
संगी संग संगी नर, फिरे ताहि पथ देसु, कहि सूरदास भजहुरी मन भावन रंग॥
3. अपने मन को जीतना है, विश्वास रखो राम में।
कर्म करो फल की इच्छा मत करो, इश्वर को समर्पित करो धरती पर॥
4. जाहिं गोराख नाथ नरद, धरतें ध्यान बड़ाई।
सूरदास ने कही आप, तब समुझौं मुख समुझ माई॥
5. चितवत बिरहिनी कृष्ण को, तब मूढ़ जीव भए।
कहते सूरदास, इतना ध्यान, साधो बिरहिनी न सुन जाए॥
6. सूरदास प्रभु साचे, मिलि है निरंजन भाव।
जन सुन सुन बहुत लोभी, ध्यान धरे चार नाव॥
7. दुर्बुद्धि जन जोषी लोभ में, अज्ञान धरै को दार।
सूरदास कहते, ऐसे मन नहीं बिसार॥
8. गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविन्द दियो बताय॥
9. देखा जब तब सभी कोई, लगता दुख का मोह।
सूरदास कहते भजो भगवान, जो तुम्हे मिलें दोनों॥
10. साधु संग लागे आधार, राम भजन रसिक प्यार।
कहते सूरदास, बिन संतोष कोई, किन्ह का मन ध्यार॥
ये दोहे सूरदास जी के काव्यसंग्रह में सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं और सामाजिक, आध्यात्मिक, और नैतिक मुद्दों पर गहरा प्रभाव डालते हैं।