मकरन्द पांडे के घर किसी संत की दुआ से एक बालक का जन्म हुआ। 13-14 वर्ष की उम्र में वह बालक ग्वालियर के पास किसी गाँव में आम के एक बगीचे की रखवाली करने के लिए गया। उसका नाम तन्ना था। वह कुछ पशुओं की आवाज निकालना जानता था।
हरिदास महाराज अपने भक्तों को लेकर हरिद्वार से लौट रहे थे। वे उसी बगीचे में आराम करने के लिए रुके। इतने में अचानक शेर की गर्जना सुनाई दी। शेर की गर्जना सुनकर सारे यात्री भाग खड़े हुए। हरिदास महाराज ने सोचा कि'गाँव के बगीचे में शेर कहाँ से आ सकता है?' इधर-उधर झौंककर देखा तो एक लड़का छुपकर हँस रहा था। महाराज ने पूछाः "शेर की आवाज तूने की न?"
तन्ना ने कहाः "हाँ।" महाराज के कहने पर उसने दूसरे जानवरों की भी आवाज निकालकर दिखायी। हरिदास महाराज ने उसके पिता को बुलाकर कहाः "इस बेटे को मेरे साथ भेज दो।"
पिता ने सम्मति दे दी। हरिदास महाराज ने शेर, भालू या घोड़े-गधे की आवाजें जहाँ से पैदा होती हैं उधर (आत्मस्वरूप) की ओर ले जाने वाला गुरुमंत्र दे दिया और थोड़ी संगीत-साधना करवायी। तन्ना साल में 10-15 दिन अपने गाँव आता और शेष समय वृंदावन में हरिदासजी महाराज के पास रहता। बड़ा होने पर उसकी शादी हुई।
एक बार ग्वालियर में अकाल पड़ गया। उस समय के राजा रामचंद्र ने सेठों को बुलाकर कहाः "गरीबों के आँसू पोंछने के लिए चंदा इकट्ठा करना है।"
किसी ने कुछ दिया, किसी ने कुछ... हरिदास के शिष्य तन्ना ने अपनी पत्नी के जेवर देते हुए कहाः "राजा साहब ! गरीबों की सेवा में इतना ही दे सकता हूँ।"
राजा उसकी प्रतिभा को जानता था। राजा ने कहाः "तुम साधारण आदमी नहीं हो, तुम्हारे पास गुरुदेव का दिया हुआ मंत्र हैं और तुम गुरु के आश्रम में रह चुके हो। तुम्हारे गुरु समर्थ हैं। तुमने गुरुआज्ञा का पालन किया है। तुम्हारे पास गुरुकृपारूपी धन है। हम तुमसे ये गहने-गाँठेरूपी धन नहीं लेंगे बल्कि गुरुकृपा का धन चाहेंगे।"
"महाराज ! मैं समझा नहीं।"
"तुम अगर गुरु के साथ तादात्म्य करके मेघ राग गाओगे तो यह अकाल सुकाल में बदल सकता है। सूखा हरियाली में बदल सकता है। भूख तृप्ति में बदल सकती है और मौतें जीवन में बदल सकती हैं। श्रद्धा और विश्वास से गुरुमंत्र जपने वाले की कविताओं में भी बल आ जाता है। तुम केवल सहमति दे दो और कोई दिन निश्चित कर लो। उस दिन हमसब इस राजदरबार में ईश्वर को प्रार्थना करते हुए बैठेंगे और तुम मेघ राग गाना।"
राग-रगिनियों में बड़ी ताकत होती है। जब झूठे शब्द भी कलह और झगड़े पैदा कर सक देते हैं तो सच्चे शब्द, ईश्वरीय यकीन क्या नहीं कर सकता? तारीख तय हो गयी। राज्य में ढिंढोरा पीट दिया गया।
उन दिनों दिल्ली के बादशाह अकबर का सिपहसालार ग्वालियर आया हुआ था। ढिंढोरा सुनकर उसने दिल्ली जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। उसने सोचा कि 'तन्ना के मेघ राग गाने से क्या सचमुच बरसात हो सकती है? यह मुझे अपनी आँखों से देखना है।'
कार्यक्रम की तैयारी हुई। तन्ना थोड़ा जप-ध्यान करके आया था। उसका हाथ वीणा की तारों पर घूमने लगा। सबने अपने दिल के यकीन की तारों पर भी श्रद्धा के सुमन चढ़ायेः
'हे सर्वसमर्थ, करूणा-वरूणा के धनी, मेघों के मालिक वरूण देव, आत्मदेव, कर्ता-भोक्ता महेश्वर ! परमेश्वर ! तेरी करूणा-कृपा इन भूखे जानवरों पर और गलतियों के घर – इन्सानों पर बरसे...
हम अपने कर्मों को तोलें तो दिल धड़कता है। किंतु तेरी करूणा पर, तेरी कृपा पर हमें विश्वास है। हम अपने कर्मों के बल से नहीं किंतु तेरी करूणा के भरोसे, तेरे औदार्य के भरोसे तुझसे प्रार्थना करते हैं.....
हे गोबिन्द ! हे गोपाल ! हे वरूण देव ! इस मेघ राग से प्रसन्न होकर तू अपने मेघों को आज्ञा कर सकता है और अभी-अभी तेरे मेघ इस इलाके की अनावृष्टि को सुवृष्टि में बदल सकते हैं।
इधर तन्ना ने मेघ बरसाने के लिए मेघ राग गाना शुरु किया और देखते-ही-देखते आकाश में बादल मँडराने लगे.... ग्वालियर की राजधानी और राजदरबार मेघों की घटाओं से आच्छादित होने लगा। राग पूरा हो उसके पूर्व ही सृष्टिकर्ता ने पूरी कृपा बरसायी और जोरदार बरसात होने लगी !
अकबर का सिपहसालार देखकर दंग रहा गया कि कवि के गान में इतनी क्षमता कि बरसात ला दे। सिपहसालार ने दिल्ली जाकर अकबर को यह घटना सुनायी। अकबर ने ग्वालियर नरेश को समझा-बुझाकर तन्ना को माँग लिया। अब तन्ना 'कवि तन्ना' नहीं रहे बल्कि अकबर के नवरत्नों में एक रत्न 'तानसेन' के नाम से सम्मानित हुए।