मीराबाई की गुरुभक्ति
एक बार संत रैदास जी चितौड़ पधारे थे। रैदासजी रघु चमार के यहाँ जन्में थे। उनकी छोटी जाति थी और उस समय जात-पाँत का बड़ा बोल बाला था। वे नगर से दूर चमारों की बस्ती में रहते थे। राजरानी मीरा को पता चला कि संत रैदासजी महाराज पधारे हैं लेकिन राजरानी के वेश में वहाँ कैसे जायें? मीरा एक मोची महिला का वेश बनाकर चुपचाप रैदासजी के पास चली जाती, उनका सत्संग सुनती, उनके कीर्तन और ध्यान में मग्न हो जाती।
ऐसा करते-करते मीरा का सत्त्वगुण दृढ़ हुआ। मीरा ने सोचाः ‘ईश्वर के रास्ते जायें और चोरी छिपे जायें? आखिर कब तक?’ फिर मीरा अपने ही वेश में उन चमारों की बस्ती में जाने लगी।
मीरा को उन चमारों की बस्ती में जाते देखकर अड़ोस-पड़ोस में कानाफूसी होने लगी। पूरे मेवाड़ में कुहराम मच गया कि ‘ऊँची जाति की, ऊँचे कुल की, राजघराने की मीरा नीची जाति के चमारों की बस्ती में जाकर साधुओं के यहाँ बैठती है, मीरा ऐसी है…. वैसी है…..’ ननद उदा ने उसे बहुत समझायाः
“भाभी ! लोग क्या बोलेंगे? तुम राजकुल की रानी और गंदी बस्ती में, चमारों की बस्ती में जाती हो? चमड़े का काम करनेवाले चमार जाति के एक व्यक्ति को गुरु मानती हो? उसको मत्था टेकती हो? उसके हाथ से प्रसाद लेती हो? उसको एकटक देखते-देखते आँखें बंद करके न जाने क्या-क्या सोचती और करती हो? यह ठीक नहीं है। भाभी ! तुम सुधर जाओ।”
सासु नाराज, ससुर नाराज, देवर नाराज, ननद नाराज, कुटुंबीजन नाराज…. उदा ने कहाः
मीरा मान लीजियो म्हारी, तने सखियाँ बरजे सारी।
राणा बरजे, राणी बरजे, बरजे सपरिवारी।
साधन के संग बैठ, बैठ के लाज गँवायी सारी।।
‘मीरा ! अब तो मान जा। तुझे मैं समझा रही हूँ, सखियाँ समझा रही हैं, राणा भी कह रहा है, रानी भी कह रही है, सारा परिवार कह रहा है…. फिर भी तू क्यों नहीं समझती है? इन संतों के साथ बैठ-बैठकर तू कुल की सारी लाज गँवा रही है।’
नित प्रति उठ नीच घर जाय कुलको कलंक लगावे।
मीरा मान लीजियो म्हारी तने बरजे सखियाँ सारी।।
तब मीरा ने उत्तर दियाः
तारयो पियर सासरियो तारयो माह्म मौसाली सारी।
मीरा ने अब सदगुरु मिलिया चरणकमल बलिहारी।।
‘मैं संतों के पास गयी तो मैंने पीहर का कुल तारा, ससुराल का कुल तारा, मौसाल का और ननिहाल का कुल भी तारा है।’
मूर्ख लोग समझते हैं कि भजन करने से इज्जत चली जाती है वास्तव में ऐसा नहीं है।
राम नाम के शारणे सब यश दीन्हो खोय।
मूरख जाने घटि गयो दिन दिन दूनो होय।।
मीरा की कितनी बदनामी की गयी, मीरा के लिए कितने षड्यंत्र किये गये लेकिन मीरा अडिग रही तो मीरा का यश बढ़ता गया। आज भी लोग बड़े प्रेम से मीरा को याद करते हैं, उनके भजनों को गाकर अथवा सुनकर अपना हृदय पावन करते हैं।
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