माता पार्वती की गुरु नारद के वचनो में ढृढ निष्ठा
माता पार्वती ने नारद मुनि को गुरु बनाकर शिव जी को पति रूप में पाने के लिए मंत्र लिया और जप करने लगी | उनके घोर तप से तीनों लोक डगमगाने लगे |
ब्रह्मा, विष्णु और सारे ऋषि, मुनि, देवता भगवान शिव के पास गए | उन्हें सारी बात कह सुनाई और बताया की माता सती ने पार्वती रूप में अवतार लिया है और आपको पाने के घोर तप कर रही हैं |
भगवान शिव ने सप्तर्षियों को परीक्षा लेने के लिए भेजा |सप्तर्षियों ने जाकर उनके घोर तप की प्रसंसा की और कहा आप कहाँ शंकर भगवान को पाने के चक्कर में पड़ गयी | वो तो अड़भंगी हैं | उनके पास न तो घर है, न ही वो अच्छे कपडे पहनते हैं | स्मशान की रख लपेटे रहते हैं | आपके लिए ब्रह्मा या विष्णु सही रहेंगे आदि | ऐसे भगवान शंकर की तमाम बुराईयाँ कह सुनाई |
माता पार्वती ने आदर से कहा | आप ऋषियों ने भला किया जो यहाँ आकर दर्शन दिया | पर आप लोग बाद में आये | मेरे गुरु नारद जी ने मुझे जो मंत्र दिया और बात बतायी उसमे मुझे अडिग निष्ठा है | आप लोग पहले मिले होते तो बात अलग होती पर अब ये जीवन तो मैं अपने गुरु नारद के दिए हुए ज्ञान के साथ ही बताउंगी और शिव जी को पाने के लिए तप करुँगी |
सप्तर्षियों ने शिवजी को जाकर सब बात कह सुनाई और शिवजी पार्वती माता की गुरुनिष्ठा और शिव चरणो में प्रेम जानकर अत्यंत प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए |
इस प्रकार शिव पार्वती विवाह सम्पन्न हुआ |
पुराणों में उसके बाद के वर्णनों में जब भी नारद मुनि शिवजी से मिलने जाते हैं | वो शिव पार्वती को प्रणाम करते हैं तो माता पार्वती भी उनका गुरु कहकर सम्मान करती हैं |
उन्हें ऊँचे स्थान पर आसान देकर उनका आदर सत्कार करती हैं |
पुराणों में इसलिए कहा है "गुरु निष्ठा परम तपः अर्थात गुरु में एकनिष्ठ प्रीति होना परम तप करने के समान ही है"
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