Sunday, 19 February 2017

गौमाता प्रिय या पुत्र - अहिल्याबाई

एक बार की बात है इन्दौर नगर के किसी मार्ग के किनारे एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी थी, तभी देवी अहिल्याबाई के पुत्र मालोजीराव अपने रथ पर सवार होकर गुजरे। मालोजीराव बचपन से ही बेहद शरारती व उच्छृंखल प्रवृत्ति के थे। राह चलते लोगों को परेशान करने में उन्हें विशेष आंनद आता था।
गाय का बछड़ा अकस्मात उछलकर उनके रथ के सामने आ गया। गाय भी उसके पीछे दौड़ी पर तब तक मालोजी का रथ बछड़े के ऊपर से निकाल चुका था ।

रथ अपने पहिये से बछड़े को कुचलता हुआ आगे निकल गया था । गाय बहुत देर तक अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक मनाती रही ।

तत्पश्चात उठकर देवी अहिल्याबाई के दरबार के बाहर टंगे उस घण्टे के पास जा पहुँची, जिसे अहिल्याबाई ने प्राचीन राज परम्परा के अनुसार त्वरित न्याय हेतु विशेष रूप से लगवाया था।
अर्थात् जिसे भी न्याय की जरूरत होती,वह जाकर उस घन्टें को बजा देता था। जसके बाद तुरन्त दरबार लगता तुरन्त न्याय मिलता । घन्टें की आवाज सुनकर देवी अहिल्याबाई ने ऊपर से एक विचित्र दृश्य देखा कि एक गाय न्याय का घन्टा बजा रही है । देवी ने तुरन्त प्रहरी को आदेश दिया कि गाय के मालिक को दरबार में हाजिर किया जाये।

कुछ देर बाद गाय का मालिक हाथ जोड़ कर दरबार में खड़ा था। देवी अहिल्याबाई ने उससे कहा कि ” आज तुम्हारी गाय ने स्वंय आकर न्याय की गुहार की है । जरूर तुम गो माता को समय पर चारा पानी नही देते होगें। उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा कि माते श्री ऐसी कोई बात नही है ।
गोमाता अन्याय की शिकार तो हुई है, परन्तु उसका कारण मैं नही कोई ओर है, उनका नाम बताने में मुझे प्राणो का भय है ।” देवी अहिल्या ने कहा कि अपराधी जो कोई भी है उसका नाम निडर होकर बताओं ,तुम्हे हम अभय -दान देते है। तब उस व्यक्ति ने पूरी वस्तु:स्थित कह सुनायी । अपने पुत्र को अपराधी जानकर देवी अहिल्याबाई तनिक भी विचलीत नही हुई। और फिर गोमाता स्वयं उनके दरबार में न्याय की गुहार लगाने आयी थी। उन्होने तुरन्त मालोजी की पत्नी मेनावाई को दरबार में बुलाया यदि कोई व्यक्ति किसी माता के पुत्र की हत्या कर दें ,तो उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए ? मालो जी की पत्नी ने कहा कि जिस प्रकार से हत्या हुई, उसी प्रकार उसे भी प्राण-दण्ड मिलना चाहिए। देवी अहिल्याने तुरन्त मालोजी राव का प्राण-दण्ड सुनाते हुए उन्हें उसी स्थान पर हाथ -पैर बाँधकर उसी अवस्था में मार्ग पर डाल दिया गया। रथ के सारथी को देवी ने आदेश दिया ,पर सारथी ने हाथ जोड़कर कहा मातेश्री मालोजी राजकुल के एकमात्र कुल दीपक है। आप चाहें तो मुझे प्राण -दण्ड दे दे, किन्तु मे उनके प्राण नही ले सकता ।

तब देवी अहिल्याबाई स्वंय रथ पर सवार हुई और मालोजी की ओर रथ को तेजी से दोड़ाया, तभी अचानक एक अप्रत्याशित घटना हुई। रथ निकट आते ही फरियादी गोमाता रथ निकट आ कर खड़ी हो गयी । गोमाता को हटाकर देवी ने फिर एक बार रथ दौड़ाया , फिर गोमाता रथ के सामने आ खड़ी हो गयी। सारा जन समुदाय गोमाता और उनके ममत्व की जय जयकार कर उठा। देवी अहिल्या की आँखो से भी अश्रुधारा बह निकलीं ।
गोमाता ने स्वंय का पुत्र खोकर भी उसके हत्यारे के प्राण ममता के वशीभूत होकर बचाये। जिस स्थान पर गोमाता आड़ी खड़ी हुई थी, वही स्थान आज इन्दौर में ( राजबाड़ा के पास) आड़ा बाजार के नाम से जाना जाता है।







Sunday, 12 February 2017

ऊपरवाली सरकार की नजरों से कोई बच नहीं सकता !





पाकिस्तानके सख्खर मेंसाधुबेलाआश्रम था। रमेशचन्द्रनाम के आदमीको उस समय केसंत महात्माने अपनी जीवनकथा सुनाई थीऔर कहा था किमेरी यह कथासब लोगों कोसुनाना। मैंकैसे साधु-संतबना यह समाजमें जाहिरकरना। वहरमेशचन्द्रबाद मेंपाकिस्तानछोड़कर मुंबईमें आ गया था।उस संत नेअपनी कहानीउसे बताते हुएकहा थाः“मैंजब गृहस्थ थातब मेरे दिनकठिनाई से बीतरहे थे। मेरेपास पैसे नहींथे। एक मित्रने अपनी पूँजीलगाकर रूई काधन्धा किया औरमुझे अपनाहिस्सेदारबनाया। रूईखरीदकरसंग्रह करतेऔर मुंबई मेंबेच देते।धन्धे मेंअच्छा मुनाफाहोने लगा।
एकबार हम दोनोंमित्रों कोवहाँ केव्यापारी नेमुनाफे के एकलाख रूपयेलेने के लिएबुलाया। हमरूपये लेकरवापस लौटे। एकसराय मेंरात्रिगुजारनेरूके। आज सेसाठ-सत्तर वर्षपहले की बातहै। उस समय कएक लाख जिससमय सोनासाठ-सत्तररूपये तोलाथा। मैंनेसोचाः एक लाखमें से पचासहजार मेरामित्र ले जाएगा।हालाँकिधन्धे मेंसारी पूँजीउसी ने लगाईथी फिर भीमुझे मित्र केनाते आधाहिस्सा दे रहाथा। फिर भीमेरी नीयतबिगड़ी।मैंने उसे दूधमें जहर पिलादिया। लाश कोठिकाने लगाकरअपने गाँव चलागया। मित्र केकुटुम्बीमेरे पास आयेतब मैंने नाटककिया, आँसूबहाय और उनकोदस हजार रूपयेदेते हुए कहाकि मेरा प्यारामित्र रास्तेमें बीमार होगया, एकाएक पेटदुखने लगा,काफी इलाजकिये लेकिन…हम सबको छोड़करविदा हो गये।दस हजार रूपयेदेखकर उन्हेंलगा कि, ‘यहबड़ा ईमानदारहै। बीस हजारमुनाफा हुआहोगा उसमें सेदस हजार देरहा है।‘ उन्हेंमेरी बात परयकीन आ गया।

बादमें तो मेरेघर मेंधन-वैभव होगया। नब्बे हजारमेरे हिस्सेमें आ गये थे।मैं जलसा करनेलगा। मेरे घरपुत्र का जन्महुआ। मेरेआनन्द काठिकाना न रहा।बेटा कुछ बड़ाहुआ कि वहकिसी अगम्यरोग से ग्रस्तहो गया। रोगऐसा था किभारत के किसीडॉक्टर का बसन चला उसे स्वस्थकरने में। मैंअपने लाडले कोस्वीटजरलैंडले गया। काफीइलाज करवाये,पानी की तरहपैसे खर्चकिये,बड़े-बड़ेडॉक्टरों कोदिखाया लेकिनकोई लाभ नहींहुआ। मेराकरीब करीब सबधन नष्ट होगया। दूसरा धनकमाया वह भीखर्च हो गया।आखिर निराशहोकर बच्चे कोभारत में वापसले आया। मेराइकलौता बेटा ! अब कोईउपाय नहीं बचाथा। डॉक्टर,वैद्य, हकीमोंके इलाज चालूरखे। रात्रिको मुझे नींदनहीं आती औरबेटा दर्द सेचिल्लातारहता।

एकदिन बेटे कोदेखते देखतेमैं बहुतव्याकुल होगया। विह्वलहोकर उसे कहनेलगाः
“बेटा! तूक्यों दिनोदिन क्षीणहोता चला जारहा है ? अबतेरे लिए मैंक्या करूँ ? मेरेलाडले लाल ! तेरा यहबाप आँसूबहाता है। अबतो अच्छा होजा, पुत्र !
बेटागंभीर बीमारीमें मूर्छितसा पड़ा था। मैंनेनाभि से आवाजउठाकर बेटे कोपुकारा था तोबेटा हँसनेलगा। मुझेआश्चर्य हुआ।अभी तो बेहोशथा फिर कैसेहँसी आई ? मैंनेबेटे से पूछाः
“बेटा! एकाएककैसे हंस रहाहै ?”
“जानेदो….।“
“नहींनहीं…. बताक्यों हँस रहाहै ?”
आग्रहकरने पर आखिरबेटा कहनेलगाः
“अभीलेना बाकी है,अभी बीमारीचालू रहेगी,इसलिए मैं हँसरहा हूँ। मैंतुम्हारा वहीमित्र हूँजिसे तुमनेजहर दिया था।मुंबई की धर्मशालामें मुझे खत्मकर दिया था औरमेरा सारा धनहड़प लिया था।मेरा वह धन औरउसका सूद मैंवसूल करने आयाहूँ। काफी कुछहिसाब पूरा होगया है। अबकेवल पाँच सौरूपये बाकीहैं। अब मैंआपको छुट्टीदेता हूँ। आपभी मुझे इजाजतदो। ये बाकीके पाँच सौरूपये मेरीउत्तर क्रियामें खर्चडालना, हिसाबपूरा होजाएगा। मैंजाता हूँ… रामराम….“ औरमेरे बेटे नेआँख मूँद ली,उसी क्षण वहचल बसा।

मेरेदोनों गालोंपर थप्पड़ पड़चुकी थी। साराधन नष्ट होगया और बेटाभी चला गया। मुझेकिये हुए पापकी याद आयी तोकलेजा छटपटानेलगा। जब कोईहमारे कर्मनहीं देखता हैतब देखने वालामौजूद है।यहाँ की सरकारअपराधी को शायदनहीं पकड़ेगीतो भी ऊपरवालीसरकार तो है ही।उसकी नजरों सेकोई बच नहींसकता।

मैंनेबेटे की उत्तरक्रियाकरवाई। अपनीबची-खुचीसंपत्तिअच्छी-अच्छीजगहों में लगादी और मैंसाधु बन गयाहूँ। आप कृपाकरके मेरी यहबात लोगों कोकहना। मैंनेभूल की ऐसीभूल वे न करें,क्योंकि यहपृथ्वीकर्मभूमि है।“

कर्मप्रधानविश्व करीराखा।
जोउस करे तैसाफल चाखा।।

कर्मका सिद्धान्तअकाट्य है।जैसे काँटे सेकाँटा निकलताहै ऐसे हीअच्छे कमों सेबुरे कर्मोंकाप्रायश्चितहोता है। सबसेअच्छा कर्म हैजीवनदातापरब्रह्मपरमात्मा कोसर्वथा समर्पितहो जाना।पूर्व काल मेंकैसे भी बुरेकर्म हो गयेहों उन कर्मोंकाप्रायश्चितकरके फिर सेऐसी गलती न होजाए ऐसा दृढ़संकल्प करनाचाहिए। जिसकेप्रति बुरेकर्म हो गयेहों उनसेक्षमायाचनाकरके, अपनाअन्तःकरणउज्जवल करकेमौत से पहलेजीवनदाता सेमुलाकात करलेनी चाहिए।
भगवानश्रीकृष्णकहते हैं-
अपिचेत्सुदराचारोभजतेमामनन्यभाक्।
साधुरेवस मन्तव्यःसम्यग्व्यवसितोहि सः।।

‘यदिकोई अतिशयदुराचारी भीअनन्य भाव सेमेरा भक्तहोकर मुझकोभजता है तो वहसाधु ही माननेयोग्य है,क्योंकि वहयथार्थनिश्चयवालाहै। अर्थात्उसनेभलीभाँतिनिश्चय करलिया है कि परमेश्वरके भजन केसमान अन्य कुछभी नहीं है।‘
(भगवद्गीताः 9.30)
तथा-


अपिचेदासिपापेभ्यःसर्वेभ्यःपापकृत्तमः।
सर्वंज्ञानप्लवेनैववृजिनंसंतरिष्यसि।।

‘यदितू अन्य सर्वपापियों से भीअधिक पाप करनेवाला है तो भीतू ज्ञान रूपनौका द्वारानिःसन्देहसम्पूर्णपाप-समुद्र सेभली-भाँति तरजाएगा।‘
(भगवद्गीताः 4.36)








Sunday, 5 February 2017

सात दिन में तो तेरी मौत है! - संत एकनाथ जी



संतएकनाथ जी




संतएकनाथ जी केपास एक बूढ़ापहुँचा। बोला-




“आपभी गृहस्थीमैं हम भी गृहस्थी। आप भी बच्चोंवाले मैं भी बच्चों वाला। आप भी सफेदकपड़ों वाले मैं भी सफेद कपड़े वाला।लेकिन आपकोलोग पूजतेहैं, आपकी इतनीप्रतिष्ठा है, आप इतने खुशरह सकते हो, आपइतनेनिश्चिन्त जीसकते हो औरमैं इतना परेशान क्यों ? आप इतनेमहान् और मैं इतना तुच्छ क्यों ?”

एकनाथजी ने सोचा किइसकोसैद्धान्तिकउपदेश देने सेकाम नहींचलेगा, उसकोसमझ में नहींआयेगा। कुछकिया जाय…एकनाथ जी नेउसे कहाः

“चलरे सात दिनमें मरने वाले! तूमुझसे क्यापूछता है ? अब क्याफर्क पड़ेगा ? सात दिनमें तो तेरीमौत है।“

वहआदमी सुनकरसन्न रह गया।एकनाथ जी कहरहे हैं सातदिन में मौतहै तो बातपूरी हो गई।वह आदमी अपनीदुकान पर आयालेकिन उसके दिमागमें एकनाथ जीके शब्द घूमरहे हैं- “सात दिनमें मौत है।उसको धन कमानेका जो लोभ था,हाय हाय थी वहशान्त हुई।अपनेप्रारब्ध का जोहोगा वहमिलेगा।ग्राहकों सेलड़ पड़ता थातो अब प्रेमसे व्यवहारकरने लगा। शामहोती थी तबदारू के घूँटपी लेता था वहदारू अब फीकाहो गया। एकदिन बीता….दूसरा बीता….तीसरा बीता….।उसे भोजन मेंविभिन्नप्रकार के, विभिन्नस्वाद केव्यंजन, आचार,चटनी आदिचाहिए था, जरासी कमी पड़नेपर आगबबूला होजाता था। अबउसे याद आनेलग गया कि तीनदिन बीत गये,अब चार दिन हीबचे। कितनाखाया-पिया ! आखिर क्या ? चौथा दिनबीता….पाँचवाँ दिनआया…। बहू परक्रोध आ जाताथा, बेटेनालायक दिखतेथे, अब तीन दिनके बाद मौतदिखने लगी। सबपरिवारजानोंके अवगुण भूलगया, गद्दारीभूल गया।समाधान पालिया कि संसारमें ऐसा हीहोता है। यहमेरा सौभाग्यहै कि वे मुझसेगद्दारी औरनालायकी करतेहैं तो उनका आसक्तिपूर्णचिन्तन मेरेदिल में नहींहोता है। यदिआसक्तिपूर्णचिन्तन होगातो फिर क्या पताइस घर मेंचूहा होकर आनापड़े या साँपहोकर आना पड़ेया चिड़ियाँहोकर आनापड़े, कोई पतानहीं है।पुत्र औरबहुएँ गद्दारहुई हैं तो अच्छाही है क्योंकितीन दिन मेंअब जाना ही है।इतने समय मेंमैं विट्ठल कोयाद कर लूँ-विट्ठला…विट्ठला….विट्ठला…
भगवानका स्मरण चालूहो गया। जीवनभर जो मंदिरमें नहीं गयाथा, संतों कोनहीं मानता थाउस बूढ़े कानिरन्तर जापचालू हो गया।संसार की तू-तू,मैं-मैं,तेरा-मेरा सबभूल गया।

छट्ठादिन बीतनेलगा।ज्यों-ज्योंसमय जाने लगात्यों-त्योंबूढ़े काभक्तिभाव,नामस्मरण, सहज-जीवन,सहनशक्ति,उदारता,प्रेम, विवेक, आदिसब गुण विकसितहोने लगे।कुटुम्बी दंगरह गये कि इसबूढ़े का जीवनइतनापरिवर्तितकैसे हो गया ! हम रोजमनौतियाँमनाते थे कियह बूढ़ा कबमरे, हमारीजान छूटे।
लोगदेवी-देवता कीपूजा-प्रार्थनाकरते हैं, मनौतियाँमानते हैं,संतों सेआशीर्वादमाँगते हैं, “हे देवीदेवता ! इसबूढ़े कास्वर्गवास होजाये, हमभंडारा करेंगे…हे महाराज ! आशीर्वाददो, मेरा ससुरबहुत दुःखीहै।“
“क्याहै उसे ?”
“वहबीमार है,आँखों सेदिखता नहीं,बुढ़ापा है।खाना हजम नहींहोता। नींदनहीं आती।सारी रात ‘खों… खों….‘ करकेहमारी नींद खराबकरता है। आपआशिष करो। यातो वह नवजवानहो जाय या तोआप दया करो……।“
“क्यादया करूँ?”
“बाबा! आप समझजाओ, हमसे मतकहलवाओ।“
जिनलाय तो सूरसठा आहेन।
सेकांधी कीं नथींदा।।
जिनबच्चों को तुमजन्म देते हो,पालते-पोसते हो,अपने पेट परपट्टियाँबाँधकर उनको पढ़ातेहो उनको बड़ाहोने दो। उनकोबहू मिलने दो।तुम्हाराबुढ़ापा आनेदो। फिर देखोतुम्हारा हालक्या होता है।

बहुतपसारा मत करोकर थोड़े कीआश।
बहुतपसारा जिनकिया वे भीगये निराश।।

चारचार पुत्रहोने पर भीबूढ़ा परेशानहै क्योंकिबूढ़े नेपुत्र पर आधाररखा है,परमात्मा काआधार छोड़दिया है।तुमने परमात्माका आधारछोड़कर पुत्रपर, पैसे पर,कुटुम्ब पर,राज्य पर,सत्ता पर आधाररखा तो अन्त मेंरोना पड़ेगा।सारे विश्व कीसुविधाएँ जिसकोउपलब्ध होसकती हैं ऐसीभारत कीभूतपूर्व प्रधानमंत्रीइन्दिरा को भीविवश होकर अपनेपुत्र की मौतदेखनी पड़ी।खुद को गोलियोंका शिकार होनापड़ा। दूसरेबेटे कोआतंकवादियोंने उड़ा दिया।मौत कब आती है,कैसे आती है, कहाँआती है कोईपता नहीं है।हम यहाँ सेजाएँ लेकिन घरपहुँचेंगे यानहींपहुँचेंगेक्या पता ? घर सेदुकान पर जातेसमय रास्तेमें क्या पताकुछ हो जाय ! कोई पतानहीं इस नश्वरशरीर का।

उसबूढ़े काछट्ठा दिन बीतरहा है। उसकीप्रार्थनामें उत्कण्ठाआ गई है कि हेभगवान !मैं क्या करूँ? मेरेकर्म कैसेकटेंगे ? विठोबा…विठोबा… माजाविट्ठला….माजा विट्ठला….जाप चालू है।रात्रि मेंनींद नहींआयी। रविदासकी बात उसकोशायद याद आ गईहोगी। अनजानेमें उसके जीवनमें रविदासचमका होगा।

रविदासरात न सोइयेदिवस न लीजिएस्वाद।
निशदिनहरि को सुमरीएछोड़ सकलप्रतिवाद।।

बूढ़ेकी रात अबसोने में नहींगुजरती,विठोबा केस्मरण मेंगुजर रही है।
सातवेंदिन प्रभातहुई। बूढ़े नेकुटुम्बियोंको जगायाः
“बोलाचाला माफाकरना… कियाकराया माफकरना… मैं अबजा रहा हूँ।“
कुटुम्बीरोने लगे किः “अब तुमबहुत अच्छे होगये हो, अब नजाते तो अच्छाहोता।“
जोभगवान काप्यारा बनजाता है वहकुटुम्ब का भीप्यारा होताहै, समाज का भीप्यारा होताहै। जो भगवानको छोड़करअपनेकुटुम्बियोंके लिए सब कुछकरता है उसकोकुटुम्बी भीआखिरदुत्कारतेहैं।

बूढ़ाकहता हैः “गोबर सेलीपकर चौकालगाओ। मेरेमुँह में तुलसीका पत्ता दो।गले में तुलसीका मनकाबाँधो। आप लोगरोना मत। मुझेविठोबा केचिन्तन मेंमरने देना।“

कुटुम्बीसब परेशानहैं। इतने मेंएकनाथ जी वहाँसे गुजरे।कुटुम्बीभागे।एकनाथजी के पैरपकड़े। आप घरमें पधारो।
एकनाथजी ने घर आकरबूढ़े सेपूछाः

“क्यों,क्या बात है ? क्योंसोये हो ?”

“महाराजजी ! आप हीने तो कहा थाकि सात दिनमें तुम्हारीमौत है। छःदिन बीत गये।यह आखिरी दिनहै। संत कावचन मिथ्यानहीं होता। वहसत्य ही होताहै।“

मैंभी तुम्हें कहदेता हूँ किआप लोग भी एकसप्ताह में,सात दिन मेंही मरोगे। आपरविवार को मरोगेया सोमवार कोमरोगे यामंगलवार को याबुधवार को यागुरूवार को याशुक्रवार को।इन छः दिनोंमें नहींमरोगे तोशनिवार को तोजरूर मरोगेही। आप जब कभीमरोगे तब इनसात दिनों मेंसे कोई न कोईएक दिन तो होगाही। आठवाँ दिनतो है हीनहीं।
एकनाथजीकी बात भीसच्ची थी। संतक्यों झूठ बोलें? हमसमझते नहींहैं संत कीबात को तो कह देतेहैं संत कीबात गलत है।

शेरकी दाढ़ मेंआया हुआ शिकारशायद बच भीसकता है।लेकिन सच्चेसदगुरू केहृदय मेंजिसका स्थानबन जाता है वहकैसे फेल होसकता है ?

एकनाथजी का वचन उसबूढ़े ने सत्यमाना तो उसकाजीवनपरिवर्तित होगया।
एकनाथजी उस बूढ़ेसे कहने लगेः
“तुमनेमुझसे कहा थाकि आप में औरक्या फर्क है।मैंनेतुम्हें कहाकि तुम्हारीसात दिन में मौतहोगी। तुमनेअपनी मौत कोसात दिन दूरदेखा। अबबताओ, तुमनेसात दिन मेंआनेवाली मौतको देखकरकितनी बारदारू पिया ?”
“एकबार भी नहीं।“
“कितनीबार क्रोधकिया ?”
“एकबार भी नहीं।“
“कितनेलोगों सेझगड़ा किया ?”
“किसीसे भी नहीं।“
“तुमकोसात दिन, छःदिन, पाँच दिन,चार दिन दूरमौत दिखी।जितनी-जितनीमौत नजदीक आतीगई उतना उतनातुम ईश्वरमयहोते गये।संसार फीकाहोता गया। यहतुम्हाराअनुभव है किनहीं ?”
“हाँमहाराज ! मेराअनुभव है।“

“सातदिन मौत दूरहै तो संसारमें कहीं रसनहीं दिखा,भगवान मेंप्रीति बढ़ी,जीवन भक्तिमयबन गया। मेरेगुरू ने तोमुझे सामने हीमौत दिखा दीहै। मैं हररोजमौत को अपनेसामने हीदेखता हूँ।इसलिए मुझेसंसार मेंआसक्ति नहींहै और प्रभु मेंप्रीति है।जिसकी प्रभुमें प्रीति हैउसके साथदुनियाँवालेप्रीति करतेहैं। इसलिएमैं बड़ादिखता हूँ औरतुम छोटेदिखते हो।वरना हम औरतुम दोनों एकही तो हैं।“

अनात्मवस्तुओं मेंमन को लगाया,अनात्म पदार्थोंमें मन कोलगाया तो हमअपने आपकेशत्रु हो जातेहैं और छोटेहो जाते हैं।अनात्मवस्तुओं से मनको हटाकरआत्मा में लगातेहैं तो हमश्रेष्ठ होजाते हैं औरअपने आपकेमित्र हो जातेहैं, महान् होजाते हैं।

नानकतुमसे बड़ेनहीं थे, कबीरतुमसे बड़ेनहीं थे,महावीर तुमसेबड़े नहीं थे,बुद्ध तुमसे बड़ेनहीं थे,क्राइस्टतुमसे बड़ेनहीं थे,कृष्ण भीतुमसे बड़ेनहीं थे,तुम्हारा ही रूपथे, लेकिन वेसब बड़े होगये क्योंकिउन्होंनेअपने आप में,आत्मस्वरूपमें स्थिति की,परमात्मा मेंस्थिति की औरहम लोग परायेमें स्थितिकरते हैं,अनात्मा मेंस्थिति करतेहैं, संसार  स्थितिकते हैं इसलिएहम मारे जातेहैं।

अबतब जो हो गयासो हो गया, जोबीत गई सो बीतगई। अब बातसमझ में आ गई।आगे सावधानरहना है। सदायाद रखना हैकि हम सब सातदिन में मरनेवाले हैं।आखिर कब तक ?

हमयोजना बनातेहैं कि कलरविवार है,छुट्टी मनायेंगे,खेलेंगे,घूमेंगे।लेकिन वहरविवार ऐसा भीतो हो सकता हैकि हम अर्थीपर आरूढ़ होजाएँ। सोमवारके दिन हमश्मशान में हीपहुँच जाएँ।मंगलवार केदिनसगे-सम्बन्धीके वहाँ जानेका सोचते हैंलेकिन हो सकताहै कि हम मरघटसे ही मिलनेचल पड़ें।बुधवार को हमविदेश जाने कीतैयारी करतेहैं लेकिन होसकता है किबुधवार के दिनयह शरीरबुद्धू की तरहमुर्दा होकरपड़ा हो।गुरूवार केदिन गुरू केद्वार जाने कासंकल्प कियाहो लेकिन होसकता है कि गुरूवारके दिन गुरूके द्वार केबजाय यम के द्वारही पहुँचजाएँ।शुक्रवार केदिन शुकदेवजीजैसे ज्ञान कोपाने में लगतेहैं कि शूकर-कूकरकी योनियों कीओर जाते हैं,कोई पता नहीं।शनिवार के दिनकिसी की शादीमें आइसक्रीमखाने जाते हैंकिमृत्युशैय्यापर सोते हैंकोई पता नहीं।

सुबहउठो तब सबसेपहलेपरमात्मा कोऔर मौत को यादकर लो। क्यापता कौन सेदिन इस जहाँसे चले जायें।आज सोमवार है ? क्या पताकौन से सोमवारको हम चलेजायें। आज मंगलवारहै ? क्यापता कौन सेमंगलवार को हमविदा हो जायें।मैं सच बोलताहूँ, इन सातदिनों में सेकोई न कोई दिनहोगा मौत का।भगवान कीकसम…।

मौतको औरपरमात्मा कोहररोज अपनेसामने रखोगेतो महान होनेमें देरी नहींहै। मौत को औरपरमात्मा कोसामने रखोगेतो अपने गाँवका साइन बोर्डदेखने काउत्साह होगा।अपने गाँव कास्टेशन आ जायतो तुम चलेजाने, पूछतेमत रहना किमेरा गाँव हैकि तेरा गाँवहै ? तुमचले जाना अपनेगाँव। फलानागया कि नहीं गयाइसका इन्तजारमत करना।