Sunday, 12 February 2017

ऊपरवाली सरकार की नजरों से कोई बच नहीं सकता !





पाकिस्तानके सख्खर मेंसाधुबेलाआश्रम था। रमेशचन्द्रनाम के आदमीको उस समय केसंत महात्माने अपनी जीवनकथा सुनाई थीऔर कहा था किमेरी यह कथासब लोगों कोसुनाना। मैंकैसे साधु-संतबना यह समाजमें जाहिरकरना। वहरमेशचन्द्रबाद मेंपाकिस्तानछोड़कर मुंबईमें आ गया था।उस संत नेअपनी कहानीउसे बताते हुएकहा थाः“मैंजब गृहस्थ थातब मेरे दिनकठिनाई से बीतरहे थे। मेरेपास पैसे नहींथे। एक मित्रने अपनी पूँजीलगाकर रूई काधन्धा किया औरमुझे अपनाहिस्सेदारबनाया। रूईखरीदकरसंग्रह करतेऔर मुंबई मेंबेच देते।धन्धे मेंअच्छा मुनाफाहोने लगा।
एकबार हम दोनोंमित्रों कोवहाँ केव्यापारी नेमुनाफे के एकलाख रूपयेलेने के लिएबुलाया। हमरूपये लेकरवापस लौटे। एकसराय मेंरात्रिगुजारनेरूके। आज सेसाठ-सत्तर वर्षपहले की बातहै। उस समय कएक लाख जिससमय सोनासाठ-सत्तररूपये तोलाथा। मैंनेसोचाः एक लाखमें से पचासहजार मेरामित्र ले जाएगा।हालाँकिधन्धे मेंसारी पूँजीउसी ने लगाईथी फिर भीमुझे मित्र केनाते आधाहिस्सा दे रहाथा। फिर भीमेरी नीयतबिगड़ी।मैंने उसे दूधमें जहर पिलादिया। लाश कोठिकाने लगाकरअपने गाँव चलागया। मित्र केकुटुम्बीमेरे पास आयेतब मैंने नाटककिया, आँसूबहाय और उनकोदस हजार रूपयेदेते हुए कहाकि मेरा प्यारामित्र रास्तेमें बीमार होगया, एकाएक पेटदुखने लगा,काफी इलाजकिये लेकिन…हम सबको छोड़करविदा हो गये।दस हजार रूपयेदेखकर उन्हेंलगा कि, ‘यहबड़ा ईमानदारहै। बीस हजारमुनाफा हुआहोगा उसमें सेदस हजार देरहा है।‘ उन्हेंमेरी बात परयकीन आ गया।

बादमें तो मेरेघर मेंधन-वैभव होगया। नब्बे हजारमेरे हिस्सेमें आ गये थे।मैं जलसा करनेलगा। मेरे घरपुत्र का जन्महुआ। मेरेआनन्द काठिकाना न रहा।बेटा कुछ बड़ाहुआ कि वहकिसी अगम्यरोग से ग्रस्तहो गया। रोगऐसा था किभारत के किसीडॉक्टर का बसन चला उसे स्वस्थकरने में। मैंअपने लाडले कोस्वीटजरलैंडले गया। काफीइलाज करवाये,पानी की तरहपैसे खर्चकिये,बड़े-बड़ेडॉक्टरों कोदिखाया लेकिनकोई लाभ नहींहुआ। मेराकरीब करीब सबधन नष्ट होगया। दूसरा धनकमाया वह भीखर्च हो गया।आखिर निराशहोकर बच्चे कोभारत में वापसले आया। मेराइकलौता बेटा ! अब कोईउपाय नहीं बचाथा। डॉक्टर,वैद्य, हकीमोंके इलाज चालूरखे। रात्रिको मुझे नींदनहीं आती औरबेटा दर्द सेचिल्लातारहता।

एकदिन बेटे कोदेखते देखतेमैं बहुतव्याकुल होगया। विह्वलहोकर उसे कहनेलगाः
“बेटा! तूक्यों दिनोदिन क्षीणहोता चला जारहा है ? अबतेरे लिए मैंक्या करूँ ? मेरेलाडले लाल ! तेरा यहबाप आँसूबहाता है। अबतो अच्छा होजा, पुत्र !
बेटागंभीर बीमारीमें मूर्छितसा पड़ा था। मैंनेनाभि से आवाजउठाकर बेटे कोपुकारा था तोबेटा हँसनेलगा। मुझेआश्चर्य हुआ।अभी तो बेहोशथा फिर कैसेहँसी आई ? मैंनेबेटे से पूछाः
“बेटा! एकाएककैसे हंस रहाहै ?”
“जानेदो….।“
“नहींनहीं…. बताक्यों हँस रहाहै ?”
आग्रहकरने पर आखिरबेटा कहनेलगाः
“अभीलेना बाकी है,अभी बीमारीचालू रहेगी,इसलिए मैं हँसरहा हूँ। मैंतुम्हारा वहीमित्र हूँजिसे तुमनेजहर दिया था।मुंबई की धर्मशालामें मुझे खत्मकर दिया था औरमेरा सारा धनहड़प लिया था।मेरा वह धन औरउसका सूद मैंवसूल करने आयाहूँ। काफी कुछहिसाब पूरा होगया है। अबकेवल पाँच सौरूपये बाकीहैं। अब मैंआपको छुट्टीदेता हूँ। आपभी मुझे इजाजतदो। ये बाकीके पाँच सौरूपये मेरीउत्तर क्रियामें खर्चडालना, हिसाबपूरा होजाएगा। मैंजाता हूँ… रामराम….“ औरमेरे बेटे नेआँख मूँद ली,उसी क्षण वहचल बसा।

मेरेदोनों गालोंपर थप्पड़ पड़चुकी थी। साराधन नष्ट होगया और बेटाभी चला गया। मुझेकिये हुए पापकी याद आयी तोकलेजा छटपटानेलगा। जब कोईहमारे कर्मनहीं देखता हैतब देखने वालामौजूद है।यहाँ की सरकारअपराधी को शायदनहीं पकड़ेगीतो भी ऊपरवालीसरकार तो है ही।उसकी नजरों सेकोई बच नहींसकता।

मैंनेबेटे की उत्तरक्रियाकरवाई। अपनीबची-खुचीसंपत्तिअच्छी-अच्छीजगहों में लगादी और मैंसाधु बन गयाहूँ। आप कृपाकरके मेरी यहबात लोगों कोकहना। मैंनेभूल की ऐसीभूल वे न करें,क्योंकि यहपृथ्वीकर्मभूमि है।“

कर्मप्रधानविश्व करीराखा।
जोउस करे तैसाफल चाखा।।

कर्मका सिद्धान्तअकाट्य है।जैसे काँटे सेकाँटा निकलताहै ऐसे हीअच्छे कमों सेबुरे कर्मोंकाप्रायश्चितहोता है। सबसेअच्छा कर्म हैजीवनदातापरब्रह्मपरमात्मा कोसर्वथा समर्पितहो जाना।पूर्व काल मेंकैसे भी बुरेकर्म हो गयेहों उन कर्मोंकाप्रायश्चितकरके फिर सेऐसी गलती न होजाए ऐसा दृढ़संकल्प करनाचाहिए। जिसकेप्रति बुरेकर्म हो गयेहों उनसेक्षमायाचनाकरके, अपनाअन्तःकरणउज्जवल करकेमौत से पहलेजीवनदाता सेमुलाकात करलेनी चाहिए।
भगवानश्रीकृष्णकहते हैं-
अपिचेत्सुदराचारोभजतेमामनन्यभाक्।
साधुरेवस मन्तव्यःसम्यग्व्यवसितोहि सः।।

‘यदिकोई अतिशयदुराचारी भीअनन्य भाव सेमेरा भक्तहोकर मुझकोभजता है तो वहसाधु ही माननेयोग्य है,क्योंकि वहयथार्थनिश्चयवालाहै। अर्थात्उसनेभलीभाँतिनिश्चय करलिया है कि परमेश्वरके भजन केसमान अन्य कुछभी नहीं है।‘
(भगवद्गीताः 9.30)
तथा-


अपिचेदासिपापेभ्यःसर्वेभ्यःपापकृत्तमः।
सर्वंज्ञानप्लवेनैववृजिनंसंतरिष्यसि।।

‘यदितू अन्य सर्वपापियों से भीअधिक पाप करनेवाला है तो भीतू ज्ञान रूपनौका द्वारानिःसन्देहसम्पूर्णपाप-समुद्र सेभली-भाँति तरजाएगा।‘
(भगवद्गीताः 4.36)








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