Wednesday, 3 October 2018

सबसे ठोस क्या है?








सब से ज्यादा सुदृढ़ क्या है?

--- ज्यादा ठोस है संकल्प बल…!
दृढ निश्चय…. संकल्प बल सब से ठोस है….”
एक भाई विकलांग था…संकल्प बल मिला…विद्वान् हुआ…. महा-निदेशक बना…. फौज का निदेशक बना ..
ग्रंथो में भी संकल्प बल की बहोत महिमा गाई है…
लेकिन इस से भी ठोस है, जहाँ से संकल्प उठता है वो….. संकल्प बल से भी ज्यादा ठोस है वो “चिद-घन”!…..भगवान को “घन” कहा है …पथ्थर को तोड़नेवाला लोहा…लोहे को तपानेवाला अग्नि ..अग्नि में शीतलता देनेवाला जल ..और जल के मेघों को वायु उड़ा के ले जाएगा.. और वायु की गति को भी घुमा देगा ऐसा है मनुष्य का संकल्प बल…तो संकल्प बल सब से शक्तिशाली है…..
मैं इस बात को आगे ले चलता…..सब से ज्यादा ठोस है वो “चिद-घन विभु” ….संकल्प जहाँ से उठता है ..
वो आत्मा परमात्मा है “घन… चैत्यन्य..!”
संकल्प बल से महा निदेशक की कुर्सी मिली…कुर्सी चली गई… फिर भी जो नही गया….कुर्सी पे बैठनेवाला शरीर मर गया, फिर भी जो मरा नही वो है आत्मा ..!
महा शक्तिशाली!….
महा शाश्वत तत्व है !!
और उस आत्मा में प्रीति हो जाए, विश्रांति हो जाए…उस को “मैं” के रूप में स्वीकार कर लिया जाए ….
..अभी तो शरीर को “मैं”मानते…. वो तो छुट जाएगा …..शरीर मर जाएगा तो मरने के बाद भी नही मिटता वो कितना ठोस है!!
…. हजारो जनम से शरीर मिले..मिल मिल के मिट गए…. लेकिन आप का आत्मा कभी नही मिटा….
.. ‘ “मैं” हूँ की नही?’ ऐसा सवाल कभी नही उठता…. भगवान है की नही ये सवाल उठ सकता है …
“मैं” हूँ की नही ये सवाल नही उठेगा ..सब से ज्यादा जीवात्मा का वास्तविक “मैं” ठोस है…. जहाँ से संकल्प उठता है… संकल्प तो हो हो के मिट जाते….संकल्पों को सफलता विफलता मिल कर चली जाती…. फिर भी नही जाता इसी को उपनिषद बोलते

ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,

पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते।
ॐ शांति: शांति: शांतिः

..वो अपने आप में पूर्ण है…. परमात्मा की तरह जीवात्मा.भी पूर्ण है ..पूर्ण से ही उत्पत्ति होती है |





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