कहानी की मुख्य विन्दु -
सच्चा प्यासा मोलभाव नहीं करता।
जिसे सच में चाहिए, वह पहले समर्पण करता है, बाद में पूछता है।
सच्चे प्रेम, ईश्वर, ज्ञान और साधना की राह में तर्क-वाद नहीं, अनुभव और समर्पण चलता है।
जिन्हें वाकई कुछ पाना होता है, वे बहस नहीं करते, श्रम करते हैं।
कहानी -
रेलवे स्टेशन की भीड़भाड़, भागती दौड़ती ज़िंदगी की झलक होती है। कहीं कोई ट्रेन पकड़ने की जल्दी में होता है, तो कहीं कोई बिछड़े हुए को गले लगाने आया होता है। उसी तरह उस दिन भी एक प्लेटफ़ॉर्म पर रोज़ की तरह अफरा-तफरी का माहौल था। गाड़ी आकर रुकी, और यात्रियों के बीच एक दुबला-पतला लड़का, सिर पर मटका और हाथ में गिलास लिए, आवाज़ लगाता हुआ दौड़ रहा था—"पानी ले लो! ठंडा पानी!"
उसके कपड़े साधारण थे, लेकिन आंखों में चमक और आत्मविश्वास था। वह लड़का मेहनत करता था, इज्ज़त से कमाता था और ईमानदारी से अपने काम में लगा हुआ था।
सेठ और सौदा
ट्रेन के एक डिब्बे में एक अमीर सेठ बैठे थे। उनकी उम्र पचास के पार थी, पहनावे से साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि वह पैसे वाले और दुनियादारी में खूब डूबे हुए व्यक्ति हैं। उन्होंने उस लड़के को बुलाया, “ए लड़के, इधर आ!”
लड़का दौड़ता हुआ आया, और घड़े से पानी का गिलास भरकर सेठ की ओर बढ़ा दिया। सेठ ने पूछा, “कितने पैसे में?”
लड़के ने सीधे कहा, “पच्चीस पैसे।”
सेठ थोड़ा मुस्कराया और बोला, “पंद्रह में देगा क्या?”
लड़का हल्के से मुस्कराया, कुछ नहीं बोला। उसने धीरे से पानी वापस घड़े में उड़ेला और चुपचाप आगे बढ़ गया।
मौन में छिपा गूढ़ संदेश
उसी डिब्बे में एक साधु महात्मा बैठे हुए थे। उन्होंने यह सारा दृश्य देखा—लड़के का व्यवहार, उसका उत्तर न देना, उसकी हल्की मुस्कान और आगे बढ़ जाना।
महात्मा को लगा, इस बालक के मन में जरूर कोई गूढ़ रहस्य छिपा है। वे ट्रेन से नीचे उतर आए और धीरे-धीरे उस लड़के के पीछे चलने लगे।
“ऐ लड़के, ज़रा ठहरो,” महात्मा ने पुकारा।
लड़का ठिठका और विनम्रता से बोला, “जी महाराज?”
महात्मा ने पूछा, “बेटा, जब सेठ ने तुझसे मोलभाव किया, तब तू मुस्कराया क्यों? और कुछ बोला भी नहीं?”
बालक का उत्तर – अनुभव की गहराई
लड़का शांति से बोला, “महाराज, मुझे हंसी इसलिए आई कि सेठजी को वास्तव में प्यास लगी ही नहीं थी। उन्हें केवल पानी का रेट पूछना था। यदि उन्हें सच में प्यास लगी होती, तो वह बिना कुछ कहे पानी का गिलास पकड़ लेते और पी लेते। कीमत बाद में पूछते।”
महात्मा यह सुनकर चकित रह गए। उन्होंने कहा, “तू तो बहुत समझदार निकला। ऐसा कैसे सोच लिया तूने?”
लड़का बोला, “महाराज, मैं हर रोज़ सैकड़ों यात्रियों को पानी पिलाता हूं। जिनको सच में प्यास लगती है, उनके होठ सूखे होते हैं, हाथ कांपते हैं और आंखें गिलास पर टिकी होती हैं। वे कभी रेट नहीं पूछते। लेकिन जो केवल शौक या आदत में पूछते हैं, वे मोलभाव करते हैं।”
प्रतीकात्मक व्याख्या
महात्मा कुछ देर मौन रहे, फिर बोले, “बेटा, तूने आज बहुत बड़ी बात कह दी। वास्तव में यह संसार भी एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, और जीवन एक यात्रा। कुछ लोग इस जीवन में सच्ची प्यास—परमात्मा, सत्य, प्रेम, और ज्ञान की प्यास—लेकर आते हैं। वे साधना में लगते हैं, सेवा करते हैं, सवाल नहीं करते। लेकिन बहुत से लोग केवल चर्चा, तर्क, और मोलभाव में फंसे रहते हैं—‘क्या मिलेगा, कितनी मेहनत करनी होगी, क्या फायदा होगा।’ ऐसे लोग जीवन की असली मिठास नहीं चख पाते।”
आध्यात्मिक संकेत
महात्मा ने कहा, “आजकल लोग भगवान का नाम तो लेते हैं, लेकिन उनके भीतर सच्ची तड़प नहीं है। वे पहले यह पूछते हैं—क्या फल मिलेगा? कितनी तपस्या करनी पड़ेगी? क्या फायदा होगा? लेकिन जो सच्चे साधक होते हैं, वे पहले खुद को समर्पित करते हैं, बाद में सोचते हैं कि भगवान क्या देगा। उनका विश्वास यह होता है—‘मैंने जो भी पाया वो उसकी मेहरबानी है, और जो खोया वह मेरी नादानी।’”
जीवन का दर्शन
उस बालक ने न कोई प्रवचन दिया, न कोई किताब पढ़ी थी, लेकिन उसके अनुभव ने उसे ज्ञान की ऊँचाई पर पहुँचा दिया था। वह जानता था कि जीवन में जो सच्चा होता है, वह तर्क नहीं करता। जैसे सच्चा प्यासा रेट नहीं पूछता, वैसे ही सच्चा साधक प्रश्नों में नहीं उलझता।
सुखी जीवन का मंत्र
महात्मा ने अंत में कहा, “बेटा, तू धन्य है। तूने आज मुझे भी सिखा दिया कि ज़िंदगी में सच्ची प्यास ही हमें परम लक्ष्य तक ले जाती है। बाकी सब दिखावा है। कुछ लोग पूछते हैं—भगवान है भी या नहीं? मैं उनसे कहता हूं—अगर नहीं है, तो ज़िक्र क्यों? और अगर है, तो फिक्र क्यों?”
उस दिन वह बालक, जो प्लेटफॉर्म पर पानी बेच रहा था, एक जीवनदर्शन का प्रतीक बन गया।
जीवन की सादगी और गहराई
"खूबसूरत रिश्ता है मेरा और भगवान के बीच –
ज़्यादा मैं मांगता नहीं, और कम वो देता नहीं।"
"मंज़िलें गुमराह कर देती हैं कभी-कभी,
इसलिए हर किसी से रास्ता नहीं पूछना चाहिए।"
"जन्म और मृत्यु हमारे हाथ में नहीं,
पर जीवन को कैसे जीना है – यह पूरी तरह हमारे हाथ में है।"
इसलिए जीवन को हँसते-हँसते, मस्ती में, और पूरे समर्पण भाव से जीना ही सच्ची साधना है। 🌼
No comments:
Post a Comment