Wednesday, 27 August 2025

गणेश चतुर्थी और चन्द्र-दर्शन का गूढ़ रहस्य

 



🌸 प्रस्तावना

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी का दिन था। सम्पूर्ण सृष्टि में उत्सव का वातावरण था। गणपति बप्पा अपने मौजिले और आनंदमय स्वभाव में विचर रहे थे। उनका रूप अद्वितीय और दिव्य था—हाथी का मुख, विशाल उदर, चार भुजाएँ, मस्तक पर शोभायमान चंद्रकलाएँ और अंग-अंग से झलकती दिव्यता।

उसी समय चन्द्रमा, जो स्वयं को रूप, लावण्य और सौंदर्य का प्रतीक मानता था, उन्हें देखकर व्यंग्यपूर्वक हँस पड़ा और बोला—

“अरे! क्या विचित्र आकृति है यह? विशाल पेट, हाथी का सिर… ऐसा रूप किसे शोभा देता है?”

यह अहंकार-भरी वाणी सुनकर गणेशजी गंभीर हुए। वे जानते थे कि जब तक अभिमान को दंड न मिले, तब तक उसका नाश नहीं होता। उन्होंने चन्द्रमा को शाप दिया—

“जाओ! आज से तुम किसी को मुँह दिखाने योग्य नहीं रहोगे। तुम्हारे दर्शन मात्र से अपयश और कलंक का उदय होगा।”


🌙 चन्द्रमा का अस्तित्व संकट में

गणेशजी के शाप से चन्द्रमा अदृश्य हो गये। पृथ्वी पर अंधकार छा गया। औषधियों का पोषण रुक गया, जल की गति बाधित हुई और सम्पूर्ण जीवन-चक्र संकट में पड़ गया। देवगण व्याकुल होकर एकत्रित हुए। ब्रह्माजी ने समझाया—

“हे देवताओं! यह संकट चन्द्रमा की उच्छृंखलता और अहंकार का परिणाम है। यदि गणेशजी को प्रसन्न किया जाए तो ही समाधान संभव है।”

तब देवताओं ने सामूहिक रूप से गणेशजी की स्तुति और अर्चना की। मंत्रोच्चार और स्तोत्र-पाठ से उन्होंने उनका हृदय पिघलाया। अंततः गणेशजी ने चन्द्रमा को आंशिक क्षमा दी और कहा—

“वर्ष के सभी दिनों में तुम सुंदरता और शीतलता का प्रसार करोगे, परंतु भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन, जिस दिन तुमने मेरा उपहास किया था, उस दिन तुम्हें देखने वाला कलंकित होगा। इस प्रकार लोगों को यह शिक्षा मिलेगी कि—

👉 ‘रूप और सौंदर्य का अहंकार मत करो।’

सच्चा सौंदर्य आत्मा में है, बाहरी रूप में नहीं। परमात्मा ही वास्तविक सौंदर्य का स्रोत है। बाहरी रूप क्षणभंगुर है, परंतु आत्मस्वरूप शाश्वत और अमर है। जो आत्मा को पहचान लेता है, वही सच्चे सौंदर्य का अनुभव करता है।”


📖 शास्त्रीय संदर्भ

श्रीमद्भागवत महापुराण (स्कंध 10, अध्याय 56–57) में वर्णित है कि जब श्रीकृष्ण ने अनजाने में चतुर्थी का चन्द्र-दर्शन किया, तो उन पर स्यमंतक मणि चोरी का झूठा आरोप लगा। यह कलंक इतना प्रबल था कि उनके भ्राता बलरामजी तक भ्रमित हो गये और कृष्णजी को दोषी समझ बैठे। यद्यपि सत्य यह था कि भगवान कृष्ण निर्दोष थे, किंतु लोकापवाद का कलंक उन पर लग ही गया।

यह प्रसंग स्पष्ट करता है कि शास्त्रों में वर्णित निषेध मात्र कथा नहीं, बल्कि जीवन में घटने वाला अनुभव-सत्य है।


🌿 आधुनिक अनुभव

अनादि काल से लेकर आज तक अनेक साधकों ने अनुभव किया है कि चतुर्थी के दिन चन्द्र-दर्शन अनावश्यक विघ्न और कलंक का कारण बनता है। एक महात्मा का अनुभव अत्यंत रोचक है। वे कहते हैं—

“मैंने चौथ का चन्द्र देखा। मुझे तो तत्काल कुछ नहीं हुआ… किंतु कुछ ही दिनों में समाज ने मेरे ऊपर ऐसा कलंक मढ़ दिया, जिसकी कोई वास्तविकता नहीं थी। भले ही ब्रह्मज्ञानी पर इसका कोई प्रभाव न हो, किंतु सामान्य जन के लिए यह अत्यंत हानिकारक सिद्ध होता है।”

इससे यह सिद्ध होता है कि शास्त्र का वचन केवल लोक-आस्था नहीं, बल्कि अनुभव-समर्थित सत्य है।


🙏 उपशमन उपाय

यदि किसी से भूलवश चतुर्थी का चन्द्र-दर्शन हो जाए, तो घबराना नहीं चाहिए। श्रीमद्भागवत में वर्णित स्यमंतक मणि की कथा का श्रद्धापूर्वक श्रवण करना चाहिए। इससे दोष शांति होती है।

साथ ही तृतीया या पंचमी का चन्द्र-दर्शन कर लेने से भी चतुर्थी-दर्शन का प्रभाव निष्प्रभावी हो जाता है। शास्त्रों ने करुणा-पूर्वक यह उपाय बताया है, ताकि भक्तगण व्याकुल न हों और उनके मन में श्रद्धा बनी रहे।


⚠️ सावधानी और संदेश

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चन्द्र-दर्शन वर्जित है। विशेष रूप से चन्द्रास्त समय तक इसका ध्यान रखना चाहिए। गणेशजी की वाणी है—

“जिस दिन तुमने मेरा उपहास किया, उसी दिन तुम्हारा दर्शन करने वाला कलंकित होगा।”


🌺 उपसंहार

✨ अतः हे भक्तों! इस दिन चन्द्र-दर्शन से पूर्णतः बचें और गणपति बप्पा की आराधना में लीन रहें। उन्हें दूर्वा, मोदक और अटूट श्रद्धा अर्पित करें। आत्मचिंतन करें कि बाहरी रूप क्षणिक है और सच्चा सौंदर्य केवल आत्मस्वरूप में है। यही गणेश चतुर्थी का गूढ़ रहस्य है, यही शास्त्र सम्मत, अनुभव प्रमाणित और आध्यात्मिक सत्य है। ✨

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